महारानी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा अपने ही पुत्र को मित्यू दण्ड देने की घटना की कहानी

अपने ही पुत्र को मित्यु दण्ड देने की कहानी

    महारानी अहिल्याबाई होलकर के जीवन में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो उनकी न्यायप्रियता और कठोर निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाते हैं। ऐसा ही एक उल्लेखनीय प्रसंग है जब उन्होंने अपने ही पुत्र को मृत्यु दंड दिया। यह घटना उनके न्याय के प्रति समर्पण और अडिग दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है।

    घटना का प्रसंग

    महारानी अहिल्याबाई होलकर का पुत्र, मालेराव होलकर, उनके शासनकाल के दौरान किसी समय अपराधी प्रवृत्तियों में लिप्त हो गया था। मालेराव का व्यवहार अनुशासनहीन और राजसी मर्यादाओं के विरुद्ध था। यह स्थिति अहिल्याबाई के लिए बहुत ही कठिन और कष्टदायक थी, क्योंकि एक ओर वह एक माता थीं और दूसरी ओर एक न्यायप्रिय शासक।

    न्यायप्रियता की परीक्षा

    अहिल्याबाई के सामने एक बड़ी चुनौती थी: क्या वह अपने पुत्र के अपराधों को माफ कर देंगी या न्याय का पालन करते हुए उसे दंडित करेंगी। अपने राज्य में अनुशासन और न्याय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए, उन्होंने कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया। अहिल्याबाई ने यह सुनिश्चित किया कि उनके शासनकाल में कानून सबके लिए समान हो, चाहे वह उनका अपना पुत्र ही क्यों न हो।

    मृत्यु दंड का आदेश

    अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालेराव को उसके अपराधों के लिए मृत्यु दंड देने का आदेश दिया। यह निर्णय उन्होंने न्याय को सर्वोपरि मानते हुए लिया, भले ही यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कितना भी कष्टदायक क्यों न हो। यह घटना उनके राज्य में न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता और कठोरता को दर्शाती है।

    निष्कर्ष

    महारानी अहिल्याबाई होलकर की यह कहानी उनकी न्यायप्रियता, साहस और अपने कर्तव्यों के प्रति अडिग समर्पण को दर्शाती है। एक माता होने के बावजूद, उन्होंने अपने राज्य की भलाई और न्याय को प्राथमिकता दी। यह प्रसंग भारतीय इतिहास में उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व की महानता को स्पष्ट करता है। अहिल्याबाई होलकर का जीवन और उनके द्वारा लिए गए निर्णय आज भी प्रशासन और न्यायिक प्रणालियों में एक प्रेरणा स्रोत हैं।

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